मानव जीवन में होश के रहस्य गूढ़तम हैं परंतु पूर्ण होश की उपलब्धि तभी संभव है जब मनुष्य हर क्षण में सम्पूर्ण होश के साथ मौजूद हो या कोशिश की हदें पार कर।
श्रीनिवास रामानुजन को जानते होंगे आप एक गणित की किताब हाँथ लग गयी और उन्होंने उस किताब को अपने पूरे होशो हवाश में बाकी हर जगह से ऊर्जा को वापस लाकर उस एकलौती किताब में केंद्रित किया और वह गणितज्ञ हो गए। इसमें दो संदेह उपजते हैं की या तो यह उनका पूर्व जन्म संस्कार था जो जाग्रत हो सका उस पुस्तक के इतने गहन अध्ययन से अथवा यह उनमें इसी वर्तमान जन्म में जन्मी योग्यता थी क्योंकि उन्होंने उस किताब को अमृत की तरह लिया था जिसे पीते हुए वो संसार तो क्या खुद को तक भूल गए और एक गणितज्ञ का जागरण घट गया।
शब्दों की रहस्यमय सूक्ष्मता से अर्थ है कि जो भी हम पढ़ रहे होते हैं, जाहिर है वह किसी ने लिखा होता है और जब वह लिख रहा होता है तो ये भी कहना अतिश्योक्ति न होगी कि वह विद्वान होगा क्योंकि किताबें हर कोई नहीं लिखता। खैर, तो जब वह विद्वान व्यक्ति टेबल कुर्सी में बैठा वह पुस्तक लिख रहा होता है तो उस कलम को जो हाँथ पकड़े हैं वह अनुभवी हाँथ हैं। वह हाँथ जिस शरीर से जुड़ा है उसने बहुत मेहनत करके वह मुकाम हासिल किया है कि वह पुस्तक लिख पाए।
और वह शरीर जिस दिमाग से जुड़ा है उस दिमाग पर बहुत गहराई से काम करके वहां के जाले हटाये गए हैं गंदगी साफ करके उसे सुव्यवस्थित किया गया है। उस मष्तिष्क के सोये पड़े कभी न इस्तेमाल किये गए न्यूरॉन्स में टकराव किये गए हैं ताकि वह बाहर की जानकारी को सहेजें और चूंकि अभ्यास बराबर जारी रहे हैं तो न्यूरॉन्स के टकराव से नए ज्ञान का उद्भव हुआ है।
और जिसे हुआ है वह उम्रदराज व्यक्तित्व लंबे अनुभवों को समेटे हैं जिनसे उपजे ज्ञान को वो शब्द दे रहे हैं। पर जैसा कि आप जानते हैं कि सब कुछ न कहा जा सकता है न ही उसे शब्द दिए जा सकते हैं परंतु पुस्तक लिखते वक्त अवश्य वह ऊर्जा के रूप में उस पुस्तक में लिखे शब्दों से जुड़ जाते हैं।
अब जब भी कोई होशपूर्वक उस पुस्तक को पढ़ेगा तो उस ऊर्जा को अभिगम(एक्सेस) कर पायेगा जो उस किताब के शब्दों से जुड़ी है अर्थात वह ज्ञान हैं, अब आप इसे 5g टेक्नोलॉजी कहें या 10g पर यह है सत्य इन्हें आकाशीक रिकार्ड्स कह सकते हैं और आकाश क्या है जमीन(पृथ्वी) से 1cm ऊपर से आकाश शुरू हो जाता है। और यह रिकार्ड्स जुड़े हैं बस उनको अपने मानसपटल पर बिखरते हुए देखकर अचंभित होने के लिए आपकी चेतना का विकास अति आवश्यक है। तभी आप किताब के शब्दों के रहस्यमय छिपे हुए ज्ञान को उपलब्ध हो पाएंगे।
चेतना की यह परिपक्वता अनुभवों से आती है और यही जीवन उद्देश्य है अर्थात मनुष्य की चेतना का विस्तारित होना अत्यावश्यक है यह तो मैं दबाव देकर बोल रहा हूँ कि ऐसा होना चाहिए परंतु ऐसा ही हो रहा है यह ब्रम्हांडीय सत्य है इसीलिए कहते हैं आपकी कोशिशें कमजोर न हों चेतना को आप सहज ही उपलब्ध हो जाएंगे।
एक व्यक्ति मानसरोवर को देखकर हजार शब्द लिख या बोल देगा परंतु वहीं दूसरा व्यक्ति मौन खड़ा होगा, यहां भी भेद है एक सबकुछ जानकर भी मौन होकर उस सुंदर दृश्य को आत्मसात कर रहा होगा और दूसरा मौनी कह रहा होगा तालाब ही तो है क्या फर्क पड़ता है। यह समस्त विभिन्नताएं चेतना से आती हैं।
शुरुवात मैंने गणित की किताब से की थी परन्तु यह रहस्य हर किताब से संबंधित है हर श्रुति व स्मृति शाश्त्र से चाहें वह जटिल संस्कृत के शब्द हों जिन्हें भगवान शिव ने पार्वती से कहे जिनकी 2 लाइनों की व्याख्या में 2 पन्ने भर जाते हैं इसीलिए संस्कृत भाषा इतनी गूढ़ व दैवीय है। वह समेट लेती है माँ है वो और मां के प्यार को आप परिभाषित करोगे तो पन्ने भर जाएंगे व्याख्या बन्द न होगी।
श्लोकों के अर्थ निकालने के लिए वह जानना जरूरी होता है जिससे उन श्लोकों को परिभाषित किया जा सके। और वह वही ज्ञान है जो उन गूढ़ शब्दों में सहज ही लिपटा है बस समझने वाले समझ जाते हैं।
ठीक उसी प्रकार कम बोलने वाले लोग पर गहरी बात बोलने वाले के श्रीमुख से निकले शब्दों के पीछे विशाल ज्ञान छिपा होता है जो समझ जाते हैं वह कहते हैं वाह क्या गहरी बात बोली है।
जैसे मैंने लिखा था कि, करीं कोशिशें हजार हमने खोजने की खुद को हर कोशिश में खोजने वाला मिटता चला गया।
इन पंक्तियों में कोई बहुत गूढ़ता नहीं हैं पर हाँ यह समेटे हैं वह जिससे हम जानते हैं कि सारी कोशिशें मिटकर आगे बढ़ने की ओर अग्रसर करती हैं ताकि और मिटते जाएं और एक दिन पूरे मिट जाएं और अनन्त में मिलकर हर जगह मौजूद हो जाएं हमेशा के लिए।
यही शब्दों की सूक्ष्मता है जो मनुष्य के आंतरिक सूक्ष्म शरीरों में हलचल पैदा करती है कि चलो इन लाइनों को व्याख्यायित (Decode) करो और वे बेचारे जितने जाग्रत होते हैं उतनी व्याख्या करते और चेतन तक लाकर फिर शब्द देते यहां तक कि यात्रा में मार्ग में जितनी बाधाएं हैं उससे आने वाले ज्ञान में अशुद्धता हो जाती और व्याख्या जल्दी किसी के समझ न आती। कभी कभी चेतन मन समझकर भी शब्द नहीं दे पाता तो शब्दों का रहस्य उसके मन तक ही सीमित रह पाता है।
अब आजकल के ज्ञान में भी वैसी ही व्याख्याएं छिपी हुई हैं जैसे E=Mc^2 हो या अन्य कोई जीव विज्ञान का शब्द जो समेटे है किसी गूढ़ अथवा अंग प्रत्यंग अथवा प्राणी की परिभाषा को।
अब कभी भी कुछ पढ़ें तो कोशिश करें मन में मंथन हो आपके फिर आप उसमें न लिखी गयी बात को भी समझ पाएंगे उसे इसलिए नहीं लिखा गया क्योंकि वह सूक्ष्म भाषा है उसका सहज ही पनपना आवश्यक है मन में अगर किसी के बताए हुए को आप रटने का प्रयास करेंगे तो वह वहां आपके अंदर प्रवेश न कर पायेगी।
जैसे गणित के किसी सवाल के हल को देखने से आप कुछ नहीं समझ सकते जबकि वह हल आपके अंदर के सूक्ष्म से आये आपके मन में तो आप बिना लिखे ही उस हल को हल कर लेंगे लिखने की भी आवश्यकता न होगी।
बाहर से शब्दों के रूप में हम वह द्रव्य अंदर ले जा सकते हैं जो मष्तिष्क के सूक्ष्म नाड़ियों अथवा तंतुओं को नींद से जगा दे पर आगे उन्हें कैसे टकराना है(फायर) होना है वह आपकी व्यक्तिगत संरचनाओं के तहत ही घटेगा किसी दूसरे का तरीका आपकी समझ न आएगा कभी, रटकर भी भूल जाएंगे कुछ वक्त के बाद।
और जब मष्तिष्क में वह तंतु फायर होते हैं तो मन न होना, आलस आना, यह सब उसके बचने के तरीके होते हैं ताकि वह सोते रह सकें जैसे सोते आये हैं हजारों वर्षों से। पर एक बार उनका टकराव शुरू हो गया तो हमेशा बेचैनी रहेगी तबतक जबतक आप सम्पूर्ण ज्ञान को उपलब्ध नहीं हो जाते बस ज्ञानियों की बेवहैनी के यही रहस्य हैं। लगातर तलाश और वह उदासी कुछ अलग कुछ नया कुछ अद्भुत की उन्ही न्यूरॉन्स का टकराव है।
अर्थात अगर मनुष्य न चाहता तो आग का अविष्कार न होता पर एक क्यूरोसिटी हार्मोन होता है जो ऐसा करने पर मजबूर करता है क्योंकि जब उस हार्मोन का स्राव होगा तो वह अलग सुख मिलेगा। बस उसके लिए हम कुछ भी करेंगे। और वह क्यूरोसिटी हार्मोन तब आएगा जब आप उस किताब पर सम्पूर्ण होश झोंक दोगे संसार और अपने शरीर को भूलकर वो भी मन से या मन न हो तो कुछ दिन जबरदस्ती करके और आप पाएंगे कि जिज्ञासु प्रवृत्ति का जागरण सहज ही हो गया आपमें।
Source : राहुल शर्मा
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