पहला कारण यह है कि,पर्वत श्रृंखलाओं पर चलने वाली उच्च गति की हवाएं "पर्वत तरंगों" का निर्माण करती हैं जो किसी भी हवाई जहाज़ को अनियंत्रित कर देती हैं
इसीलिए हवाई जहाजों के लिए उस क्षेत्र पर उड़ान भरना लगभग असंभव है। दूसरा कारण यह है कि, ऑक्सीजन मास्क में आमतौर पर 15 से 20 मिनट तक कि ऑक्सीजन रहती है।
अगर किसी कारणवश विमान को 35000 फ़ीट की ऊंचाई से नीचे लाना पड़ा तो ऐसा करना हिमालय में बहुत ख़तरनाक हो सकता है, क्योंकि 35000 फ़ीट की ऊंचाई पर ऑक्सीजन और वायुमंडलीय दबाव बहुत कम हो जाता है।
तीसरा कारण यह है कि विमानों में इतनी ज्यादा ऊँचाई रखनी पड़ती है कि यह पायलटों को "त्रुटि के लिए जगह" देता है। इसका मतलब है कि अगर कुछ गलत होता है, तो कप्तान समस्या को ठीक करने की कोशिश करते हुए विमान को कुछ देर के लिए हवा में अपने आप ही उड़ने देता है।
इस दौरान अगर त्रुटि सही हो जाती है तो फिरसे विमान उड़ने लगता है, नहीं तो आपातकाल लैंडिंग करनी पड़ती है। लेकिन हिमालय में ऐसा करना असंभव है।
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धन्यवाद
Source :दीप चाहल
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